समूह गान
गीत गा रहें हैं आज हम,
रागिनी को ढूंढते हुए।
आ गए यहाँ जवाँ कदम,
मंजिलों को ढूंढते हुए।।१।।
इन दिलों में ये उमंग है,
ये जहाँ नया बसायेंगे।
जिंदगी का तौर आज से,
दोस्तों को हम सिखायेंगे।।२।।
फूल हम नए खिलायेंगे,
ताजगी को ढूंढते हुए।
आ गए यहां जवां कदम,
मंजिलों को ढूंढते हुए।।३।।
दहेज का बुरा रिवाज है,
आज देश में समाज में।
शराब का बुरा रिवाज है,
आज देश में समाज में।।४।।
हम समाज भी बनायेंगे,
आदमी को ढूंढते हुए।
आ गए यहां जवां कदम,
मंजिलों को ढूंढते हुए।।५।।
फिर ना रो सके कोई दुल्हन,
जोर जुल्म का ना हो शिकार।
मुस्कुरा उठे धरा गगन,
हम रचेंगे ऐसी दास्ताँ।।६।।
हम वतन को यूँ सजायेंगे,
हर खुशी को ढूंढते हुए।
आ गए यहाँ जवाँ कदम,
मंजिलों को ढूंढ़ते हुए।।७।। मंजिलों को……………….
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Note- कई जगह ‘जिंदगी का दौर’ एवं ‘जहां कदम’ लिखा हुआ प्राप्त होता है, जो कि समूहगान में अर्थ की दृष्टि से अशुद्ध है जबकि ‘जिंदगी का तौर’ एवं ‘जवां कदम’ शुद्ध है।