प्रार्थना
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो॥1॥
माँ शारदे! हंसासिनी,
वागीश! वीणावादिनी।
माँ शारदे! हंसासिनी,
वागीश! वीणावादिनी।
मुझको अगम स्वर ज्ञान दो,
मां सरस्वती! वरदान दो।।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो॥2॥
मन, बुद्धि, हृदय पवित्र हो,
मेरा महान चरित्र हो।
मन, बुद्धि, हृदय पवित्र हो,
मेरा महान चरित्र हो।
विद्या, विनय, बल दान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो॥3॥
निष्काम हो मनोकामना,
मेरी सफल हो साधना।
निष्काम हो मनोकामना,
मेरी सफल हो साधना।
विद्या, विनय, बल दान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो॥4॥
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! वरदान दो।
मुझको नवल उत्थान दो,
माँ सरस्वती! …………।
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Note-
1.कई जगह ‘साधना’ की जगह ‘आराधना’ भी प्राप्त होता है। दोनों ही शब्द अर्थ की दृष्टि से सही हैं।
2.कई जगह प्रार्थना में ‘वागीश’ शब्द की जगह ‘वागेश’ शब्द प्राप्त होता है जो कि अशुद्ध है, क्योंकि ‘वागीश’ शब्द का सन्धि विच्छेद वाक्+ईश होता है जिसका अर्थ ‘वाणी की देवी’ होता है।