अलंकारों की संख्या

अलंकारों की संख्या

         अलंकारों की संख्या के निर्धारण में प्रायः सभी आचार्यों में मतभेद पाया जाता है। भरत मुनि से लेकर आधुनिक आचार्यों तक प्रत्येक के द्वारा अलंकारों  की संख्या अलग-अलग बतलाई गई है। आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणि द्वारा काव्यप्रकाश की हिन्दी व्याख्या में अलंकारों की संख्या को अधोलिखित श्लोकों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

उपमा रूपकं चैव दीपको यमकस्तथा।

चत्वार एवालङ्कारा भरतेन निरूपिताः॥1॥

वामनेन त्रयस्त्रिंशद् भेदास्तस्य निरूपिताः।

पञ्चत्रिंशद्विधश्चायं दण्डिना प्रतिपादिता:।।2॥

नवत्रिंशद्विधश्चायं भामहेन प्रकीर्तितः।

चत्वारिंशद्विधश्चैव उद्धटेन प्रदर्शित:।।3॥

द्विपञ्चाशद्विधः प्रोक्तो रुद्रटेन तत: परम्।

सप्तषष्टिविधः प्रोक्तः प्रकाशे मम्मटेन च।।४।।

शतधा जयदेवेन विभक्तो दीक्षितेन च।

चतुर्विंशतिभेदास्तु कृता एकशतोत्तरा:॥5॥

                              स्रोत-(काव्यप्रकाश की हिन्दी व्याख्या, व्याख्याकार-आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तसिरोमणि, दशम उल्लास, पृ.सं.-440)

हिन्दी अर्थ- उपमा, रूपक, दीपक और यमक नामक चार अलंकार आचार्य भरतमुनि के द्वारा निरूपित किए गए हैं जबकि वामन के द्वारा अलंकारों के 33 भेद, आचार्य दण्डी के अनुसार 35 भेद, भामह के द्वारा 39 भेद, उद्भट के द्वारा 40 भेद , रुद्रट के द्वारा 52 भेद, आचार्य मम्मट के द्वारा 67  भेद , जयदेव के द्वारा 100 भेद, अप्पयदीक्षित के द्वारा 124 भेद निरूपित किए गए हैं।

                                      

                                            तालिका

               आचार्य का नाम                               अलंकारों की संख्या

              आचार्य भरतमुनि                4
              आचार्य वामन               33
              आचार्य दण्डी               35
              आचार्य भामह               39
              उद्भट               40
              रुद्रट               52
             आचार्य मम्मट               67
             जयदेव               100
            अप्पयदीक्षित               124

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